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सफर - मौत से मौत तक….(ep-1)


उम्मीदें…….
माँ बाब अपने बच्चों से कितनी उम्मीदें रखते है।
क्या बच्चें उन उम्मीदों में खरा उतर पाते है।
जमाने को और जमाने मे उभर कर आने वाली कहानियो की
माने तो शायद नही……. आजकल जाने अनजाने में, या फिर जानबूझकर हजारों माँ बाब संतान से दुखी है। ये कोई एक घर की बात नही है। घर घर की कहानी है।

"नन्दू...….बुढ़ापे में दिमाग के पुर्जे हिल गए थे क्या….अब बताओ इस उम्र में फांसी लगा ली….जब बेटा अच्छा कमाने लगा….एक ही तो बेटा था, शादी को दो साल ही हुए थे अभी" मोती ने फोन पर कहा।  शायद नंदू के पड़ोसी का ही फोन था। अब मोती को भी खबर लेने आना पड़ेगा नंदू के घर।

समीर नंदू का इकलौता लड़का और इशानी समीर की धर्मपत्नी। दोनो नंदू के मौत का शोक मना रहे थे। साथ मे खड़े थे कुछ पड़ोसी और नंदू के बहने , यानी समीर की सरला बुआ और तुलसी बुआ और बिनोद फूफाजी भी बाहर खड़े थे।

नंदू की बीवी तो समर के होते सार ही गुजर गई थी। नंदू ने ही पाला पोसा और समीर को काबिल वकील बनाया। और समीर के नाम के आगे एडवोकेट का दर्जा दिलाया।

"क्या बात हो गयी थी बहु….तू कहां थी जब ये सब हुआ?" तुलसी बुआ ने इशानी से पूछा।

"वो मैं….बाहर गयी हुई थी। मार्किट समान लेने, घर आकर देखा तो बाबूजी ने पंखे से फांसी लगाई थी। बात कुछ भी नही थी। अकेले अकेले बड़बड़ाते रहते थे। आई डोन्ट नो….वो क्या बोलते थे, मैं ध्यान नही देती थी, टाइम पर खाना और दवाई दे दिया करती थी। और करना क्या था मैंने, उनके कमरे में वो, मेरे कमरे में मैं……हाँ वो ही कभी छत में जाते थे कभी बालकनी में….मन बैचेन रहता था उनका।"  इशानी बोली।

"कभी कुछ बताया नही क्या" तुलसी ने फिर सवाल किया।

"वो कहाँ कुछ बताते थे…और अगर मैं खुद कुछ पूछती तो भी उल्टा सीधा जवाब देकर चुप करा देते।" इशानी ने कहा।

"अभी उम्र ही क्या थी….कभी कैसे नही खाया भाई ने, कभी कैसे नही। और अब खाने पीने वाले दिन आये तो मत्ती में काल बैठ गया, बुद्धि भृष्ट हो गयी उसकी, पैंसठ साल भी हुए थे कि नही अभी उसे" सरला बोली।

"मेरे से दो साल बड़े थे वो….साठ होने में एक साल बचा है मेरा, साठ और एक उसे भी हो गए होंगे" तुलसी ने कहा।

समीर अपनी सुध में बैठा था, आधे घंटे पहले ही पिता को अग्नि देकर आया था, वो आग की लपटें अभी भी उसकी नजर के सामने लहर खा रही थी। वो शरीर राख हो चुका था जिसको बचपन मे घोड़ा बनाया, जिनके पैरों में झूला झूले, जहाँ वो जाते थे अपने गोदी में ही रखते थे, ज्यादा अच्छा बचपन तो नही दिया, लेकिन परवरिश की थी,पढ़ाया लिखाया था। एक रिक्शे वाले का बेटा आज वकील है ये समीर की मेहनत हो सकती है लेकिन नंदू के बिना ये नामुमकिन था। खुद भूखा रहकर खानां खिलाया और आज जब उनके भरपेट खाने के दिन आये तो इस तरह छोड़कर चले गए कि जमाना समीर को कोसेगा, इल्जाम लगेंगे, और बाब की मौत का कारण भी उसे बता सकते है। क्योकि ये अकाल मृत्यु थी। किसी बीमारी से नही हुई मौत, शायद मानसिक संतुलन ही खराब होगा।
समीर की तो बात नही हुई जैसे महीनों हो गए थे। क्योकि आफिस से आकर वो बाबूजी के कमरे में कभी जाता नही था। दोनो मिलते भी तो ऐसा कोई कारण नही था कि बात करे बैठकर….हाँ नंदू पूछ लिया करता था कुछ सामान्य से सवाल
"आ गया बेटा?"

जिसका एक छोटा सा जवाब था - "हाँ"

शायद हाँ के अलावा शायद ही कुछ बात होती थी। एक दिन तो समीर ने ये भी बोल दिया
"जब आपको पता है कि मैं घर मे हूँ , आपके सामने अन्दर को आ रहा हूँ, तो वही सवाल क्यो करते हो पापा? अब मैं आ गया तभी आप पूछ रहे। "

एक वो दिन था एक कल तक का दिन, कभी ये सवाल भी नही पूछा नंदू ने, एक ही सवाल था वो भी खत्म ही गया था।

कुछ दिन बीते, नंदू का रिक्शा कभाड़ी में बेच दिया गया, और ढूंढ- ढूंढकर उसके  सारे कपड़े भी इशानी ने गुरुद्वारे वालो को दे दिए।

"अब किस काम के है ये सब….जाने वाले तो चले गए" इशानी ने कहा।
"उनकी कोई तस्वीर बनवानी थी, फ्रेम में" समीर ने कहा।

"बनवा लो, मैंने कब रोका है, उन्ही के कमरे में लगाना, इधर हमारे कमरे में मत लगा देना" इशानी बोली।

"लेकिन बार बार उनके कमरे में कौन जाएगा, अब तस्वीर क्या दिक्कत कर रही हमारे कमरे में" समीर ने कहा।

"अजीब लगेगा ना….अब खुद देखो, हमारी शादी की इतनी सारी फोटोग्राफ है यहाँ, बीच मे उनकी….और वैसे भी उनका उनके कमरे में ही अच्छा लगेगा, मम्मी जी की भी वही लगा रखी थी पापाजी ने" इशानी बोली।

समीर दीवार की तरफ देखकर बोला- "अरे लेकिन वो तो मैंने यहाँ लगा दी थी ना"

"मैं वही लगा आयी हूँ" इशानी बोली।

"कम से कम पूछ तो लेते आप" समीर ने कहा

"मुझसे बिना पूछे करोगे तो मैं भला क्यो पूछूँगी" इशानी ने कहा।

अब समीर ने कुछ नही कहा, उसने कमल फ़ोटो स्टूडियो वाले को नंदू की फ़ोटो मेल कर दी और उसे फोन करके कोई अच्छा सा फ्रेमफोटो बनाने का ऑर्डर दिया।

आसमान की दूसरी छोर, एक कल्पना की उड़ान है, जहां यमराज और नंदू दोनो बादलों में आसन लिए धरती लोक में हो रहे गतिविधि को देख रहे थे।

"अब मैं कन्फ्यूज हूँ कि तुझे कहाँ भेजूं, तेरे कर्म कुछ अजीब है, पूरे जिंदगी तूने अच्छे कर्म किये और आखिरी मौके पर तु फांसी लगाकर इधर आ गया। कुछ दिन और रहकर भगवान का नाम ले लेता तो स्वर्ग की तरफ भेज देता….लेकिन जो तूने किये है तुझे स्वर्ग नही भेज सकता।" यमराज ने नंदू से कहा।

"स्वर्ग नर्क सब तो नीचे ही है महाराज….सबका अनुभव लेकर आया हूँ मै, और जिंदगी के आखिरी पल ऐसे बीते की शायद नरक उससे बेहतर जगह होगी" नंदू ने कहा।

"इंयी…….लेकिन ऐसा भी क्या….मजे से कट रही थी तेरी जिंदगी, बेटा वकील था, पड़ी लिखी बहु थी……फिर भी फांसी लगा ली…. वो लोग ठीक कह रहे है, तेरा पुर्जा ही हिला है लगता है" यमराज बोला।

"ऐसा नही है….चलो मैं तुम्हे बताता हूँ….स्वर्ग नरक सब नीचे कैसे होता है….उसके लिए कुछ दिन की छुट्टी लेनी पड़ेगी तुम्हे" नंदू बोला।

"अरे  पागल हो क्या….एक दिन की भी छुट्टी ली तो दुनिया की आबादी दोगुनी हो से ज्यादा हो जाएगी….मैं नही ले सकता छुट्टी…." यमराज बोला।

"तो रहने दो….मुझे जहां भेजना है भेजो….मुझे स्वर्ग नरक का लालच नही है, बस मेरा बेटा बहु सुखी रहे संसार मे" नंदू ने कहा।

"लेकिन तूने फांसी लगाई क्यो….ये तो बता….मुझे अचानक ही आना पड़ा वहाँ तेरे प्राण लेने….मैं कही और जा रहा था। "
यमराज बोला।

"तुम हमेशा जादू करते हो ना….वो देखो आज मेरा जादू….
----- वो धरती लोक में मैं रिक्शा चला रहा हूँ," नंदू बोला।

यमराज ने नजर धरती लोक की तरफ फेरी तो देखा कोई करीब चौदह पंद्रह साल का लड़का एक रिक्शे को तेजी से भगाते  हुए ले जा रहा था,

"लेकिन वो तो बच्चा है" यमराज बोला

"आज से पैंतालीस साल पहले की बात है, तब मैं बच्चा ही था, पता है उस जमाने मे मेरे पास अपना रिक्शा था, मेरा अपना रिक्शा जो पापा ने मुझे दिलाया था" नंदू ने कहा।
नंदू की बात सुनकर यमराज ने फिर से ध्यान धरती की तरफ डाला और नंदू के साथ नंन्दू की कहानी में खो गया।

नंन्दू  दिल्ली आनंदविहार बस स्टेशन से लोकल सवारी को घर तक छोड़ने के लिए रिक्शा चलाता था। उस समय मे उसके पापा ने मजदूरी कर कर के चार रुपये जोड़कर उसे रिक्शा दिलाया था। और अपने कंधे का आधा भार नंदू के कंधे में डाल दिया।

"मुझपर बहुत बड़ी जिम्मेदारी आ गयी थी, अपनी बहनों की शादी के लिए पैसे जोड़ने थे, पेट तो पापा भ्यार ही रहे थे" दुखी स्वर में नंदू बोला।

"इतना दुखी होकर क्यो बोल रहे हो अंकल….चलो नीचे चलकर देखते की आप कस्टमर को कैसे पटाते हो, अपनी रिक्शे में चलने के लिए" यमराज बोला।

"अरे नही! नही! ऊपर ही ठीक है, मैंने वापस नही जाना नीचे" नंदू बोला।

यमराज जबरदस्ती नंदू को लेकर सीधे आनंद बिहार बस स्टेशन में आ गया। जहां बचपन वाला नंदू  सवारी ढूंढ रहा था। यमराज और नंन्दू दोनो किसी को दिखाई नही दे रहे थे। उनका नीचे होने ना होने का कोई फर्क नही था। जैसा चल रहा था बस वैसा ही चल रहा था।

छोटा नंदू रिक्शे को पैदल पैदल स्टेशन के अंदर को ला रहा था, उसके साथ साथ चल रहे थे यमराज और नंदू अंकल….

"अरे अंकल जी, ये नंदू इतना धीरे धीरे क्यो चल रहा है, अपने रिक्शे में बैठकर क्यो नही जा रहा।" यमराज ने कहा।

"दो कारण है" नंदू अंकल ने कहा।

" बताओ ना…." यमराज बोला।

"एक तो उसे गलत फहमी है कि  पैदल ले जाने से पहिये कम घीसेंगे और हवा भी कम लूज होगी" नंदू अंकल ने बताते हुए कहा।

"और दूसरा" यमराज ने पूछा।

"आज बोंनी नही हुई है, पूरे दिन एक भी सवारी नही मिली, अब घर बिना पैसे के जाएगा तो उम्मीद लगाकर बैठे मम्मी पापा को क्या जवाब देगा" नंदू अंकल बोला

"ओह….तो आज इसके पापा इसकी ठुकाई तो नही करेंगे ना"  यमराज ने पूछा।

"डर तो बच्चे को लग रहा है, लेकिन मार पीट और डाँट का नही… ये एक ऐसा डर है जो अधिकतर बच्चो को लगता है। ये जानते हुए भी नंदू यानी कि मैं…. मैं जानता हूँ कि ना पापा मुझे डांटेंगे ना मम्मी…. मैं उनसे मार खाने से नही बल्कि उनकी उम्मीदों को तोड़ने से डर रहा हूँ, उनकी उम्मीदे है मुझसे….उनकी क्या हर माँ बाब अपने बच्चों से कोई ना कोई उम्मीद तो रखते ही है, मेरे मम्मी पापा ने पैसे कमाकर लाने की उम्मीद रखी है।" नंदु अंकल बोला।

"तो आज उनकी उम्मीद तोड़ देंगे आप" बड़ी मायूसी से यमराज ने सवाल किया।

"सब मुझसे पूछ लोगे क्या..…उसे देखो….मैंने बता दिया तो सस्पेंस क्या रह जायेगा" नंदू बोला।

"ओ हेलो….ये कहानी ये सस्पेंस….जीते जी कभी कहानी लिखी नही….और अब सस्पेंस देने के लिए मैं ही बचा हूँ क्या…. सीधे सीधे बता देते फांसी क्यो लगाई, ख़ामोखा इतनी लंबी कहानी सुनाकर सस्पेंस में रखा है सबको….और ऊपर से ये छोटे छोटे सस्पेंस…." यमराज बोला।

"देखो मैं सीधे सीधे नही बताऊंगा क्यो लगाई….गलती तुम्हारी है, जब लगाया था तब देखना था ना क्यो लगा रहा हूँ….तब ध्यान कहाँ था, बोलू शानि महाराज को की यमराज ठीक से काम नही कर रहा….महीने की सैलरी और डी.ए दोनो कटवा दूँगा। अगर धीरे धीरे जानना है तो ठीक है नही तो चलो ऊपर" नंदू कहते हुए स्टेशन के पास वाली दुकान के बाहर कुर्सी में बैठ गया।

"अरे मेरे चाचा चौधरी ….मैं धीरे धीरे देख लूँगा….लेकिन खबरदार जो दोबारा ऐसी धमकी दी…." यमराज ने नंदू से कहा।

"ठीक है ठीक है….कोई बात नही….अब बैठो और चाय मँगाओ मेरे लिए" नंदू ने यमराज से अकड़ते हुए कहा।

"चाय…….ये मेरे फूफाजी की दुकान है जो चाय मँगाऊ….और वैसे भी हमे कोई देख नही पायेगा….हम चाय कैसे मांगेंगे"  यमराज बोला।

नंदू खुश हो गया….क्योकि उसने सुना कि हमे कोई देख नही पायेगा…खुश होते हुए नंदू बोला- " अच्छा, हमे कोई देख नही पायेगा क्या….फिर तो मैं चाय पियूँगा और पैसे भी नही देने पड़ेंगे" नंदू बोलते हुए उठकर गया और चाय वाले के पास जाकर किसी और के लिए रखी गिलास को उठाने लगा। लेकिन बहुत कोशिश करने के बाद भी गिलास उसके हाथ मे नही आया। हाथ आर पार हो जाता और गिलास मुट्ठी में आता ही नही, एक हाथ से नही हुआ तो दोनो हाथ से ट्राय किया….लेकिन नामुमकिन को मुमकिन करने की शक्ति नही थी नंदू में,

परेशान होकर नंदू ने यमराज को आवाज देते हुए कहा -"युवी….बेटा इधर आना..…"

यमराज आगे पीछे देखने लगा….आखिर किसको पुकारा, कौन युवी बेटा आ गया इसका, इस सुनसान महफ़िल में….

"अरे आओ ना" नंदू ने फिर से  हाथ से इशारा करते हुए यमराज से कहा।

यमराज  ने खुद के सीने में हाथ रखते हुए कहा- "हम……हमे बुला रहे है क्या"

"और कौन दूसरा युवी है यहाँ, युवराज सिंह तो आएगा नही, अफगोस तुम्हे ही बोल रहा हूँ" नंदू ने कहा।

"लेकिन हम युवी नही यमराज है, और बेटा वेटा भी नही है हम" यमराज ने नंदू की तरफ बढ़ते हुए कहा।

"युवी शॉर्टकट है बच्चा….और अपनी उम्र देख मेरी उम्र देख….मुझे अंकल बोलेगा तो मेरा बेटा ही हुआ ना" नंदू बोला।

"उम्र नही अंकल….आप उम्र से नही शक्ल सूरत से लगते हो अंकल….वरना मैं तो  हजारों साल से ऐसा ही हूँ, लगता तीस का हूँ, लेकिन कितने का हूँ मुझे नही पता" यमराज बोला।

"अरे! तुझे अपनी उम्र नही मालूम….जब अपनी ही उम्र का नही पता, इतना हिसाब नही लगाना आता, तो लोगो के पाप पुण्य का हिसाब किताब कैसे करता है री! तू। " नंदू बोला।

"अरे जब मैं पैदा हुआ था तब आर्य भट्ट नही पैदा हुआ था, इसलिए थोड़ा अपने हिसाब के मामले में गड़बड़ा जाता हूँ, लेकिन जब से वो पैदा हुआ हमारा काम आसान कर गया, उसे लेने मैं खुद धरती मैं आया था" यमराज ने कहा।

"न्यूटन को लेने के लिए क्या कैब भेजी थी….उसे भी आप ही ले गए होंगे" नंदू बोला।

" नही वो खुद ऊपर आ गया" यमराज ने जवाब दिया।

"तो तुमने उससे पूछा नही की पेड़ से अलग होने के बाद सेब जमीन की तरफ टपकता है तो और शरीर से अलग होने के बाद आत्मा आसमान की तरफ क्यो टपकती है, क्या इसके लिए गुरुत्वाकर्षण बल कोई मायने नही रखता?" नंदू बोला।

"ऐसे सवाल तुम ही करना….मैं तुमसे मिलवा दूंगा उन्हें, मैंने एक ही सवाल किया था  उसके बाद उनसे सवाल करने की हीम्मत नही हुई मुझे" यमराज बोला।

"ऐसा भी क्या सवाल कर दिया" नंदू ने कहा।

"यही की आप ऊपर कैसे आये कोई तकलीफ तो नही हुई तो उन्होंने जवाब दिया- "मैं वायुमंडल के अनेक परतों से गुजरते हुए ऊपर आया हूँ, हां तकलीफ तो हुई, बहुत घर्षण बल लगा….हर परत में घर्षण बल अलग अलग लग रहा था….फलस्वरूप मेरी गति और चाल भी लगातार बदल रही थी, कभी कम हो जाती तो कभी बढ़ जा रही थी। लेकिन जैसे ही पृथ्वी के वायुमंडल से बाहर ब्रह्मांड में प्रवेश किया आनन्द आ गया। उसके बाद घर्षण बल शून्य हो गया। लेकिन मेरा द्रव्यमान भी मुझे ना के बराबर महसूस हुआ। लेकिन अब आप तक पहुंच गया हूँ , बिना अपनी ऊर्जा क्षति के, इससे बड़ी खुशी क्या होगी। रास्तों में तो तकलीफ होती ही है। लेकिन मंजिल में पहुंच गए तो वो तकलीफें दुख नही देती अच्छी लगने लगती है। "

"मतलब न्यूटन ने नियम लिखने अभी छोड़े नही है"  नंदू बोला।

"तो तुमने कौन सा जोक्स मारने छोड़ दिये, मैंने कौन सा प्राण हरने छोड़ दिये, अपनी आदतें कौन छोड़ता है" यमराज बोला

तभी अचानक यमराज को याद आया कि छोटा नंदू तो इधर है ही नही।

"ओ माय गॉड….नंदू कहाँ गया" यमराज चिल्लाया।

"अरे मैं यही हूँ….तुझे भी नही दिख रहा क्या" नंदू बोला।

"अरे आप नही अंकल, छोटा नंदू कहाँ गया" यमराज बोला।

बिना किसी सरप्राइज के नंदू ने यमराज से पूछा।
"टाइम कितना हो गया, जरा अपनी घड़ी में देखकर बताना"

नंदू के हाथ मे भी एक घड़ी थी, सुइयों वाली घड़ी….

"मैं क्यो बताऊ….आपके हाथ मे भी है, उसमे देखो……" यमराज ने कहा।

"अरे ये चलती तो तेरा एहसान क्यो लेता….इसमे सेल नही है ना, रुकी पड़ी है बेचारी" नंदू बोला।

"तो सेल डलवा लेना था, डलवाया क्यो नही" यमराज ने कहा।

उसकी बात सुनकर नंदू की आंखे फिर से नम हो गयी….और उसने उदासी से जवाब दिया - "कहा तो था बेटे को….लेकिन उसने कह दिया दिन भर घर रहते हो, खाली पैसे क्यो फूंकने,महीने में एक सेल खत्म हो जाता है, कौन सा आपने दफ्तर जाना है"

"अरे एक दस रुपये के सेल के लिए इतना रोना….वकील बेटा था आपका….और घड़ी की सेल लाने में उसे पैसा फूंकना लग रहा था….इसका मतलब आपने तो उसे पढ़ाने में लाखों रुपये फूंक दिए, ऐसी पढ़ाई किस काम की जो बुढ़ापे में पापा की छोटी छोटी जरूरत ना  समझती हो" यमराज को समीर की इस हरकत पर गुस्सा आया। लेकिन वो कर क्या संकता था, बस शब्दो मे बयाँ।

"वो सब छोड़ो….टाइम बताओ" नंदू ने कहा।

"सात बजे है" यमराज बोला।

"इसका मतलब मैं घर पहुंच गया होऊंगा….चलो जल्दी घर चलते है" नंदू बोला।

यमराज ने नंदू का हाथ पकड़ा और गायब होकर सीधे उसके घर पहुंच गया।  लेकिन वहाँ  कोई घर नही था, बस एक लंबा चौड़ा खेत और जंगल थे।

"अरे आपका घर कहाँ चले गया। यहाँ तो जंगल ही जंगल है" यमराज बोला।

नंदू यमराज के सिर पर थपकी मारते हुए बोला - "बेवकूफ….ये वो जमीन है जो मैंने अपनी बरसों की कमाई से खरीदी थी, और बेटे के नाम कर दी थी, अभी यहाँ घर बना नही है, अभी तो मैं मेहनत कर रहा हूँ,चार पैसे जोड़ूंगा तब घर बनेगा" नंदू बोला।

"तो मुझे क्या पता इससे पहले आप कहाँ रहते थे, मैंने तो ये ही वाला देखा है। " यमराज बोला।

"यहाँ से 24 किलोमीटर दूर है, मेरा रिक्शा भी नही है मेरे पास….कैसे ले जाऊंगा मैं….गायब होकर चलो ना" नंन्दू बोला।

"लेकिन जब मैंने देखा नही तो गायब होकर कैसे जाएंगे….एक काम करते है उड़कर जाते है,मुझे रास्ता बता देना" यमराज बोला।

दोनो ने उड़कर नंदू के घर जहां उसके पापा मम्मी और दो बहन रहती थी उस तरफ प्रस्थान किया।…

कहानी जारी है

कहानी कैसी है….बताना….जरूरी है।


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18 Comments

सिया पंडित

29-Dec-2021 03:41 PM

शुरुआत तो जबरा है, बाकी आगे क्या होता है देखते हैं

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Sachin dev

06-Dec-2021 10:08 PM

Nice

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Seema Priyadarshini sahay

06-Dec-2021 06:24 PM

बहुत बढ़िया शुरुआत।

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